
हाड़ौती में 75 वर्षीय महिला के माँ बनने का यह पहला केस, बच्ची का वजन सिर्फ 700 ग्राम, एनआईसीयू में भर्ती कराया।
75 साल की महिला की डिलीवरी के बारे में जानिए।
डॉ. अभिलाषा किंकर की कलम से…
पिछले साल आउटडोर में यह महिला आई और संतान की चाहत बताई। मै खुद हैरान थी, क्योकि उम्र बहुत ज्यादा थी। मैने पूछा की इतने साल क्या कर रहे थे? तो जबाब दिया की पहले जब सब कुछ ठीक था तो हम बच्चा नहीं चाहते थे। फिर प्रयास किया तब नहीं हुआ। ऐसे में परिवार का ही एक बच्चा गोद ले लिया, लेकिन अब हम अपनी ही संतान चाहते है। एक ग्यानिकोलोजिस्ट होने के नाते मुझे सारे रिस्क नजर आ रहे थे, लेकिन एक महिला की माँ बनने की चाहत भी स्पष्ट दिख रही थी।
खैर… जरुरी जाचे कराने के बाद सारे रिस्क समझाते हुए मैने उनका आईवीएफ टेस्ट ट्यूब तकनीक के लिये इलाज शुरू कर दिया।उसी वक्त मैने यह भी बता दिया था की संभावना काफी कम है , लेकिन प्रयास कर सकते है। हालांकि प्रयास सफल रहे और कुछ दिन बाद ही 75 साल की इस महिला को गर्भ धारण हो गया। लगातार इलाज चलता रहा और मॉनीटरिंग की जाती रही। महिला ग्रामीण परिवेश और काश्तकार परिवार से है, ऐसे में उसे एक -एक बात ध्यान से समझनी होती थी।
बार -बार उसे फॉलोअप के लिए बुलाकर समझती थी। गत दिनों वह दिखने आई तो कलर डोप्लर कराते ही उसमे व्यापक बदलाव नजर आए।
मैरे लिए यह टैंशन का विषय था, क्योकि गर्भ सिर्फ साढ़े छ माह का था। सारे तरीकों से जांच -परख के बाद हमने यह पाया कि गर्भ मे पल रहा बच्चा गंभीर डिस्ट्रैस मे है और उसे बाहर नहीं निकाला गया और उसे बाहर नहीं निकाला गया तो वह नहीं बच पाएगा और माँ को भी रिस्क होगी। ऐसे मे शनिवार को सीजेरियन कर ने का निर्णय किया और हमारी टीम ने पूरी मेहनत कर ते हुए सीजेरियन करा दिया. राजस्थान या देश का तो नहीं कहुगी, लेकिन मेरी नॉलेज है, यह हाड़ौती का पहला मामला है. बच्ची का वजन 700 ग्राम है, उसे एनआईसीयू मे भर्ती कराया गया है. शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. जसवंत महावर की देखरेख मे उसका चल रहा है. फिलहाल बच्चे के ज्यादातर पैरामीटर्स एब्नॉर्मल है. वजन भी काफी कम है, इसलिए उसे गंभीर ऑब्जर्वेशन में रखा गया है।
उम्र ही नहीं और भी कई चैलेंज थे, फिर भी हो गया सीजेरियन
इस केस में न सिर्फ माँ की उम्र, बल्कि अन्य कई सारे चैलेंज थे, जिन्हे हमारी पूरी टीम ने फेस किया और सफलतापूर्वक सीजेरियन कराया।
- असल मे माँ का एक लंग काफी पहले ही बीमारी वजह से कोलैप्स हो चुका, ऐसे में उसके एक ही लंग है. ऐसी स्थिति में उन्हे एनीस्थिसिया देना भी चुनोतिपुण्य था। उम्र पहले से जयादा थी, जो भी एक बड़ी चुनौती थी।
- फीटल डिस्ट्रेस की वजह से बच्चे के लंग कमजोर थे। उसे सुरक्षित बाहर लाने के लिए भी दो दिन तक माँ को भर्ती रखा और जरुरी दवाईया देकर गर्भ मै पल रहे बच्चे के लंग सुरक्षित किए गए।
- बच्चे का वजन काफी काम होने से बाहर आने के बाद उसे बचाना चुनोतिपुण्य था और अभी भी है, इसके लिए तत्काल शिशु रोग विशेषज्ञ की मदद ली गई और उसे एनआईसीयू मे शिफ्ट कराया गया।